क्या कहना

जो चंचल मन था उसका,
अब शांत सा लगता है।
बेचैन सी है वो,
मन कुछ तो कहता है।
फूरसत में तुम, आओ कभी,
मुझे संग तेरे है, गुनगुनाना।
इसी बात पे बात हो जाए,
तो क्या कहना।

वो चेहरे पे मासूमियत,
वो सहज भरी बातें।
जब तुम खुली किताब थी,
वो एक रात की बातें।
गुलबहार की महक में,
बात करते, चलते रहना।
इसी बात पे बात हो जाए,
तो क्या कहना।

तुम्हारे भीतर जो देखा था,
वो आज़ाद परिंदा कहा गया।
जिसे ढूँढता हू मै अब,
वो मस्त सा मुखड़ा कहा गया।
नाराज़गी अब छोड़ दो,
मुस्कान ही था, तेरा गहना।
इसी बात पे बात हो जाए,
तो क्या कहना ।

एक वादा करदो मुझसे अब,
चाहे कुछ भी हो जीवन में,
मस्त मगन हो कर। रहना।
इसी बात पे बात हो जाए,
तो क्या कहना ।

:-गुमनाम

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