धोखा शब्द नहीं केवल,
इसके रूप कइ विस्तार है।
कई रहस्य दबे है इसके,
हर बार समय कि पुकार है।
त्रेतायुग खत्म होना था,
तो अपहरण हुआ था धोखे से,
लक्षमण को जो थी बाण लगी,
जो गिरी हिला था जड़ से,
जो पर्वत बजरंग लाए थे।
जिससे हर कोशिश हुई प्रबल,
धोखा नाम चीज़ है केवल।
एकलव्य का अंगूठा दान हुआ,
कवच-कुण्डल भी कर्ण ने दिया।
यह सब इसके ही रूप थे,
कहीं दक्षिणा तो कही,
महान दान भी नाम हुआ।
द्वापर युग का समापन हुआ,
जो वक्त के कोख में रहा था पल,
जिसके समक्ष न चला कोई बल,
धोखा नाम चीज़ है केवल।
इससे राम ने मारा बाली को,
इसने नाम दिया विद्वानों को,
बरबरी मरा, गुरु द्रोण मरे,
कितने वीर गिरे उस माटी पे।
वरना अर्जुन भी कुछ खास न था,
न थे पाण्डव कर्ण से प्रबल,
जब यही बचा था मात्र एक हल,
धोखा नाम चीज़ है केवल।
नया दौर था लाने को,
अहम्, अंधेरा मिटाने को।
जब आशा जरूरत कि आती है,
जब षडयंत्र धोखा बन जाति है।
जब विजय राज सिर्फ होता फल,
तब राह दिखती, धोखा केवल।
धोखा शब्द मात्र है केवल,
धोखा नाम चीज़ है केवल।
:-गुमनाम